नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते केंद्र सरकार ने इस संबंध में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से बातचीत शुरू कर दी है। सूत्रों की मानें तो सरकार संसद के मानसून सत्र में संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत बर्खास्तगी का प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। 
जानकारी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक समिति ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के आचरण पर सवाल उठाते हुए उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। समिति के निष्कर्षों को आधार बनाते हुए सरकार ने विपक्षी दलों से भी समर्थन जुटाने की रणनीति बनाई है। संविधान के अनुसार, जज को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने से पहले कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं। 


कौन करेगा जांच?
प्रस्ताव पेश होने के बाद संबंधित सदन (लोकसभा या राज्यसभा) के सभापति या अध्यक्ष एक जांच समिति गठित करेंगे। यह समिति तीन महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी, जिस पर संसद में चर्चा के बाद आगे की कार्रवाई तय होगी। बता दें कि संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा, लिहाजा सरकार इस सत्र में ही प्रस्ताव लाने की कोशिश करेगी। 


क्या है पूरा मामला?
जस्टिस वर्मा पर गंभीर आरोप तब लगे जब 14 मार्च की रात, होली के दिन, उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई। घटना के समय वे और उनकी पत्नी भोपाल में थे, जबकि उनकी बेटी और बुजुर्ग मां घर पर मौजूद थीं। आग बुझाने पहुंचे दमकलकर्मियों को एक स्टोर रूम में नकदी से भरे बोरे जलते हुए मिले, जिससे मामला संदिग्ध बन गया। घटना से जुड़े दो वीडियो सामने आने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि सरकार किस सदन में प्रस्ताव पेश करती है, और क्या विपक्ष सरकार के साथ खड़ा होता है।